नरक चतुर्दशी – महत्व और अनुष्ठान दिवाली भारत में मनाए जाने वाले सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। रोशनी का यह त्योहार परिवार के सदस्यों को एक साथ लाता है। 5 दिवसीय यह त्योहार धनतेरस और फिर नरक चतुर्दशी से शुरू होकर लक्ष्मीपूजन, पड़वा और भाई दूज तक चलता है। त्योहार के प्रत्येक दिन का अपना महत्व और इतिहास है।
आगे पढ़िए क्या है नरक चतुर्दशी और इसका महत्व।
क्या है नरक चतुर्दशी?
विक्रम संवत हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14 वें दिन) को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। यह दीपावली के पांच दिवसीय त्योहार का दूसरा दिन है। यह लोगों के जीवन से बुराई और आलस्य को खत्म करने के लिए मनायी जाती है। हिंदू साहित्य बताता है कि इस दिन कृष्ण, सत्यभामा और काली ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। एक प्राचीन कथा के अनुसार, नरक चतुर्दशी सभी पापों से मुक्त होने के लिए और नर्क में जाने से बचने के लिए मनाई जाती है।
नरक चतुर्दशी के रसम -रिवाज
इस दिन की सबसे महत्वपूर्ण रस्म सुबह का स्नान है। लोग सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले उठते हैं और स्नान करने जाते हैं। स्नान के लिए विभिन्न सामग्रियों से बना लेप तैयार किया जाता है, जिसमें तिल का तेल, जड़ी-बूटियाँ, फूल और कुछ अन्य महत्वपूर्ण तत्व शामिल होते हैं। इस स्नान को अभ्यंग स्नान कहा जाता है। इस उबटन के साथ किया गया स्नान व्यक्ति को गरीबी, अप्रत्याशित घटनाओं, दुर्भाग्य आदि से बचाने में मदद करता है। ऐसा भी माना जाता है कि जो इस अनुष्ठान को करने में विफल रहता है वह नरक में जाता है। दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को उत्तर भारत में छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में नरक चतुर्दशी कैसे मनाई जाती है |
गोवा में, घास और पटाखों से भरे, नरकासुर के कागज से बने पुतले बनाए जाते हैं। इन पुतलों को सुबह करीब चार बजे जलाया जाता है, पटाखे फोड़े जाते हैं और लोग सुगंधित तेल से स्नान करते हैं। एक पंक्ति में दीपक जलाए जाते हैं। घर की महिलाएं पुरुषों की आरती करती हैं, उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। पोहा और मिठाई की विभिन्न किस्में परिवार और दोस्तों के साथ बनाई और खाई जाती हैं।
पश्चिम बंगाल राज्य में काली पूजा के एक दिन पहले भूत चतुर्दशी मनाई जाती है। यह माना जाता है कि इस रात को मृतक की आत्माएं अपने प्रियजनों को देखने पृथ्वी पर आती हैं। यह भी माना जाता है कि एक ही परिवार के 14 पूर्वज अपने रिश्तेदारों को देखने आते हैं और इसलिए इस रात 14 दीयों को घर के चारों ओर रखा जाता है, ताकि वे गृहणियों का मार्गदर्शन कर सकें गोवा, कर्नाटक और तमिलनाडु में, दीपावली पारंपरिक रूप से नरक चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है, जबकि शेष भारत में इसे अमावस्या पर मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। (एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।)
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।
दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।
राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने का बड़ा महात्मय है। स्नान के पश्चात विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना अत्यंत पुण्यदायक कहा गया है। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
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