क्या है अमरनाथ यात्रा के पीछे की पौराणिक कहानी
3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा बाबा भोलेनाथ के पवित्रतम तीर्थों में से एक मानी जाती है। श्रीनगर से 141 किमी दूर, इस गुफा में छत से बर्फ के पिघलने के कारण बनने वाले शिव लिंग उपस्थित हैं। यह गुफा जो चारों तरफ से बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है, हिंदू धार्मिक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

अमरनाथ मंदिर
गुफा का महत्व इसके अंदर प्रत्येक वर्ष बनने वाले 40 मीटर ऊंचे शिव लिंगम की वजह से है। यद्यपि विज्ञान शिवलिंग के निर्माण को एक सामान्य घटना बताता है, हिंदुओं का दृढ़ विश्वास है कि यह लिंगम के रूप में भगवान शिव की उपस्थिति है। यह भी माना जाता है कि लिंगम चंद्रमा के चरण के अनुसार बढ़ता और सिकुड़ता है, हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। गुफा में दो अन्य बर्फ के प्रारूप पाए जाते हैं, जिन्हें देवी पार्वती और भगवान गणेश माना जाता है।
अमरनाथ मंदिर के पीछे का इतिहास और पुराण
“राजतरंगिणी” पुस्तक में अमरेश्वर या अमरनाथ मंदिर का उल्लेख है। ऐसी मान्यता है कि 11 वीं शताब्दी ईस्वी में रानी सूर्यमथी ने इस मंदिर को त्रिशूल, और पवित्र प्रतीक भेंट किए थे। यह भी माना जाता है कि एक चरवाहे ने 15 वीं शताब्दी में गुफा को फिर से खोजा था, जब यह लोगों की यादों से लगभग पूरी तरह धूमिल हो चुका था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती को अमरता और ब्रह्मांड के निर्माण के रहस्यों का वर्णन सुनाने के लिए भगवान शिव ने इस गुफा को चुना था।
एक बार मां पार्वती ने बाबा शिव शंकर से पूछा कि क्या कारण है कि बाबा अमर हैं जबकि उनकी बार-बार मृत्यु हो जाती है? भगवान शिव ने कहा कि यह अमर कथा के कारण है। मां पार्वती ने उस अमर कथा को सुनने कि ज़िद्द की और आखिरकार बाबा को उनकी ज़िद्द के आगे झुकना पड़ा। भगवान शिव ने मां पार्वती को वह कहानी सुनाने का फैसला किया।
कहानी सुनाने के लिए, भगवान शिव ने एक एकांत स्थान की तलाश शुरू कर दी, ताकि माँ पार्वती को छोड़कर कोई भी उस अमर कथा को न सुन सके। अंत में उन्हें अमरनाथ गुफा मिली। वहाँ पहुँचने के लिए, उन्होंने पहलगाम में अपने बैल नंदी, चंदनवारी में चंद्रमा, शेषनाग झील के किनारे अपने साँप, महागुनस पर्वत पर अपने बेटे गणेश और पंजतरणी में अपने पाँच तत्वों – अग्नि, जल, वायु और आकाश – को छोड़ दिया।
इसके बाद, भगवान शिव ने माँ पार्वती के साथ इस पवित्र अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया। भगवान शिव हिरण की खाल पर बैठ गए और समाधि ले ली। उन्होंने कलाग्नि नाम के एक नाग का निर्माण किया और उसे गुफा के चारों ओर आग लगाने का आदेश दिया ताकि उस स्थान के आसपास रहने वाली हर चीज नष्ट हो जाए। फिर उन्होंने माँ पार्वती को अमरता की कहानी सुनाना शुरू किया। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद, एक अंडे का जोड़ा हिरण की खाल के नीचे संरक्षित रहा। कबूतर का एक जोड़ा उस अंडे से पैदा हुआ और माना जाता है कि वह अमर हो गया। तीर्थयात्री अभी भी अमरनाथ गुफा की ओर जाते हुए एक कबूतर के जोड़े को देख सकते हैं।
अमरनाथ यात्रा
जुलाई-अगस्त के 45-दिवस के दौरान, हर साल देश भर के तीर्थयात्री अमरनाथ गुफा के दर्शन करते हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए कई मार्ग हैं। यात्रा की 42 किमी की दूरी तय करने के लिए पहलगाम से पैदल यात्रा शुरू होती है। गुफा तक पहुंचने के लिए बुजुर्ग भक्त घोड़ों पर सवार होते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान अमरनाथ की पूजा करने से स्वास्थ्य, सुरक्षा, धार्मिक जीवन, आध्यात्मिक विकास और लंबी आयु की प्राप्ति होती है।